Friday, May 18, 2007

मै यहीं हूं सदा से


मै यहीं हूं सदा से

मैं यहीं हूं सदा से। कहीं और जाने का सवाल भी नहीं है। किसी के लिये मैं एक सराय हूं। किसी के लिये दो वक्त कि रोटी जुटाने की जगह तो किसी के लिये पूजा और इबादत स्थल। कभी रस्ता तो कभी मंजिल। ना मालूम मेरे कितने रूप हैं। मेरे दामन में हजारों फूल खिले कई जख्म भी मिले। मगर मैं रहा। वक्त के हर पल का हिसाब दर्ज करता रहा। आज सदियों बाद कोई इन्हीं भुले बिसरे पन्नों को संजोने कि कोशिश कर रहा है। फ़र्क केवल इतना है कि वहां गुलज़ारबाग एक जगह का नाम था। यहां विचारों के इसी सैरगाह का।

शुक्रिया।