Tuesday, October 30, 2007

शायद यही है सच

शायद यही है सच

एक दूसरे के लिए

कुछ पाने और सब खोने

की तमन्‍ना

शायद यही सच है

एक दिन

सब रिश्‍ते

ऐसे ही

रूक जाते है

जैसे

पानी कहीं

बहता

रूका पडा हो

किसी झील में

शायद यही सच है

शायद ....

Monday, October 29, 2007

रात जब

रात जब

दफ़तर से लौट रहा था

मेरे साथ मेरा गम भी था

उसने पूछा

दफ़तर से घर जाते वक्‍त

मुझसे कुछ सवाल

तन्‍हाईयो से भरे

उदास करता गया

तब सामने से एक रोशनी आई

देखा

जिंदगी सडक पर लोट रही थी

परछाईयां

परछाईयां

कल रात एक सपना आया

कुछ काली परछाईया

आपस में लड रही थी

अंधेरा घना था

और परछाईया

और काली थी

अचानक एक बिजली सी चमकी

उजाले के आभास ने

विचारों को तोडा

देखा तो मेरा चेहरा

दूसरे चहरे से जिरह कर रहा था

दूसरा भी

मैं ही था ,,,,