Monday, August 18, 2008

`पिता ´

पहले दो शब्द

डायरी के पुराने पन्नों के बीच के कुछ शब्दों पर एक बार फिर नजर गई। उन्हें यहां आपके सामने पेश कर रहा हूं। दिल्ली में मेरे शुरूआती सालों की बात है। मेरे बेहद करीबी एक श�स या यूं कहें दोस्त के पिताजी की मृत्यू हो गई थी। हिल गया था। बुरी तरह कांपा हुआ था। उनकी लाश को दिल्ल्ाी से रवाना करने के बाद रात भर सो नहीं सका था। उस डरावनी रात को डायरी में कुछ शब्द नोट किए थे। पता नहीं किसके लिए। तब भी समझ नहीं पाया था। आज भी कुछ वैसे ही हालात है।
----
सादर साथी,
मैं इस जगत का प्रवासी पक्षी हूं। मौसम का पता नहीं। कभी कभार ही आ पता हूं। इस बार आया तो आपके बारे में देखा। दुख हुआ। निश्चय ही कठीन क्षण रहा होगा। पर। उबरना पड़ता है। जागतिक दुनिया की इस सच्चाई का एक बार फिर सामना हुआ। तो शब्द अनायास ही, कहीं से उड़ते हुए मेरे पास चले आए। उन्हीं शŽदों को इक्_ा कर आपके पास भेज रहा हूं। क्योंकि उसे अपने उद्गम के स्ाोत्र पर पहुंचना था। वतुüल जो अधूरा रहा गया था। उसे पूरा जो करना है। यही चक्र है।

`पिता ´

छोटे हाथों की
छोटी-छोटी
अंगुलियों को पकड़
तु�हीं ने तो
मेरे नन्हें पावों को
चलना सिखाया।
रात को
कंधे पर
थपकियां देकर
जागती रातों में
सपना दिखाया।
आज
मेरे हाथ
तु�हारे हाथों को
देख नहीं पाते
पर,
तुम ही थे
या
तुम ही होे
जिसने मुझे
जीना
बतलाया
बोलो ना
तुम हो ना ....

शुक्रिया
-------------

Saturday, August 9, 2008

माँ

सर्व प्रिर्य मां विषय पर विक्सन भाई ने कुछ लिखा है। जो रचना बनी है उसे पाठकों ने भी खूब सराहा है। यकीन न आता हो तो कमेंट देख लीजिए।


माँ
बचपन से लेकर जवानी तक बहुत कुछ सिखा जाती है माँ..
रात में लोरी सुनाकर सपनों के देश में ले जाती है माँ..
बच्चों की आंखों में आंसुओं का छलकना देख नहीं पाती है माँ..
अपने आँचल के साये से उन्हें पल में पोंछ डालती है माँ..
मुश्किलों से खुद जूझती पर परिवार में हमेशा प्यार बंटती है माँ..
कुछ इस तरह से जिन्दगी गुजारती है माँ..
माँ न होती तो दुनियां में कुछ भी न होता..
यह धरती न होती यह आकाश भी न होता..

Saturday, August 2, 2008

खून से सने हमारे सपने

खून से सने हमारे सपने
-
हमारे सपने खून से सने हैं! जमीन पर बिखरी हुई हजारों लाखों लाशों की दुगZध और सड़ाध से भरे हैं! मरने से पहले पानी के लिए तड़पते प्यासे चेहरों, मौत के पहले और बाद के चिल्लाहट, अकुलाहट, डर, खौफ, आंसू , अकेलापन, निराशा और सन्न्ााटे से साराबोर है हमारे सपने। पर हमें पता ही नहीं। आभास तक नहीं है इसका। शायद पता करने का उपाय ही नहीं है। या है हमने कोशिश नहीं की । कारण जो भी हो पर हिला देने वाली (कई मायनों में दिल तोड़ने वाली और दिमाग के परखच्चे उड़ा देने वाली) सच्चाई का एक पहलू यह भी है कि कभी न खत्म होेन वाले हमारे सपने, साथियों के क्रब कीमत पर गढ़े गए हैं। खास हमारे लिए।

दरअसल हम
सपने देखना नहीं छोड़ते।
चाहते भी नहीं ।
प्यारे प्यारे सपने।
खुशियों से भरे ,
स्वर्ग के सपने।
हमारे और आपके सपने।
-
द्वितीय विश्व युद्द की लड़ाई की कई मशहूर कहानियों और उनके पात्रोंं से आपका भी परिचय होगा। अब भला सपनों का इन कहानियों से क्या संबंध। है ना। बेहद गहरा संबंध है। आगे बताउंगा। 1944 में यूरोप की जमीन पर लड़ाई जारी थी। उस वक्त भी जर्मनी और मित्र देशों के घरों में रात की आगोश में सोएं लोग सपनो में खोए थे। इधर हालिया कारगील का युद्ध तो आपको याद होगा ना। टाइगर हिल पर हिंदुस्तानी झंडा को वापस लहराने के जारी जद्दोजहद के दौरान आप क्या कर रहे थे। मैं तो सपने देख रहा था। शायद हर रात आप भी सपने ही देख रहे होंगे। वह भी भूल चुके हैं तो दुनिया भर में जारी आंतकवाद और उससे आपको बचाने में जुटे लोगों को आप जानते ही होंगे! क्या? नहीं जानते। मैं भी बड़ा बेशर्म हूं। नहीं जानता। कितनी आसानी से हम यह बोलकर बोझ से बचने की कोशिश करते हैं।
--
वापस दूसरे विश्व युद्ध पर आते हैं। यहां एक अजीब सी कहानी भी गढ़ी गई है। सेविंग प्राइवेट रयान तो याद है न आपको। नहीं है। तो जान लीजिए। फिल्म बनी हुई है। जंग की पृष्ठ भूमि पर बनाई जाने वाली मुंबइया मसाला फिल्मों से बेहद अलग इसमें सच्चाई को दिखाने का बेहद खूबसूरत और विभत्स (हां, फिल्म देखते वक्त, कई दफे यही �याल आता है जेहन में ) रूप दिया गया है। जंग की हार और एक बहादुर सैनिक के बचाने की जीत की खूनी जद्दोजहद पर अधारित यह फिल्म आपके सपनों का सही रंग आपके सामने पेश कर देगी। एकदम नंगी तस्वीर। रणभूमि की असली तस्वीर। सीधे जंग के मैदान से। तब शायद आपको यह एहसास हो (न भी हो, तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा) । अगर हो तो। समझना थोड़ा आसान रहेगा। कि क्यों मैं सपने को बोçझल बताने की हिमाकत कर रहा हूं।

(
नहीं
यह फिल्म
केवल यूहदियों के लिए नहीं है।
केवल अंगे्रजों के लिए नहीं
केवल कैथोलिक के लिए नहीं
केवल प्रोस्टेंट के लिए बिलकुल नहीं
केवल
हमारे और आपके लिए है।
उन बेगैरत किस्म के लोगों के लिए ।
जिन्हें सिर्फ अपने सपनों की परवाह है।
जहां व्यçक्तगत महत्वकाक्षाएं हावी है हमेशा
लाशों की कीमत पर भी ।
हमारे और आपकी कीमत पर
खुद की कब्र पर )
--
हजारों लोगों के खून से सने है ।
आपके सपने । हमारे सपने।
इन पर कई अजनबियों के खून का
अनजान और खौफनाक साया है।
लथपथ जिस्मों और बेजान होते,
कुछ हो चुके
अंग भंग टुकड़ों के बोझ से दबे हैं
सपने खून से सने हुए हैं
हमारे सपने।
आपके सपने।
देशवासियों के सपने।
सपने तो हम मानवों के है
पर पृष्ठभूमि हैं जानवरों वाली है
आदिम एकमद आदिम
लड़ाकू, हिंसालू
मानव जाति के सपने।
खून से लथपथ सपने।
----
रेड लाइट पर एक दूसरे से आगे बढ़ने के चक्कर में भिड़ जाने वाले। सौ -हजार रुपये के लिए एक दूसरे की मार-पीट करने वाले। बहादुरी की झूठी मिसाल देने वाले ,कायर और कमजोर किस्म के लोग ,सीधा कहें तो हम और आप । हमारे और आपके जैसे लोग। देश की सरहद सुरक्षित सीमाओं के बहुत अंदर, बेफि्रक होकर कैरियर की सीढ़िया चढ़ते । चलते, रूकते, खाते , सोचते और सोते हुए । संसद और देश में काबिज होते भ्रष्टाचार पर दिन रात चिंता जताते वक्त हम शायद यह भूल जाते हैं कि दुनिया में बहुत सारे लोग महज हमारी छह घंटे की निंद के लिए अपने हर पल जान पर दांव लगा देते हैं। वह न ही हमारे रिश्तेदार है। ना ही कोइ पड़ोसी। सबसे खतरनाक यह है कि हमें कभी मालूम भी नहीं पड़ता कि हमारे सपनों को बचाने के लिए हर पल न जाने कितनी जिंदगी लाशों में बदल जाती है।
--
काश, ऐसा नहीं होता ।
---------