Tuesday, October 30, 2007

शायद यही है सच

शायद यही है सच

एक दूसरे के लिए

कुछ पाने और सब खोने

की तमन्‍ना

शायद यही सच है

एक दिन

सब रिश्‍ते

ऐसे ही

रूक जाते है

जैसे

पानी कहीं

बहता

रूका पडा हो

किसी झील में

शायद यही सच है

शायद ....

2 comments:

Udan Tashtari said...

शायद!!!!!

मनोभाव को सुन्दरता से उकेरा है, बधाई.

rabindra said...

sach aur bhi bahut kuch hai. aapnay jo likha hai wo aapka sach hai.