Monday, July 28, 2008
मेरे भाई ! तुम भी !
मेरे भाई ! तुम भी !
बीती रात नोएडा में कहीं बैठा था
टाइमपास करने का मूड था
रोचक गप्पों का सुहाना दौर जारी था
निंदा रस में डूबे बातें कर , मजे लूट रहे थे
गप्प हांकने
और
हंसने- हंसाने के उस दौर में
अचानक
साथ बैठा साथी संजीदा हो उठा ।
भर्राए हुए आवाज में
हाथ उठाते हुए बोला
!!!!!! यार ! !
!! इससे तो मौत भली होगी !!!
हवा में ही अजब-गजब तरीके से हाथ हिलाते हुए उसने
कई तरह की मुद्राएं बनाई
कुछ बेहद श्लील, शालीन और
कुछ हद से ज्यादा अश्लील
कई
भद्दी भी।
आरामदायक कुर्सी पर आसन लगाए
वह पैरों को फुदकाने लगा
तेजी से उछलने लगा ।
फिर
चिल्लाया
!!! कुछ हो ही नहीं रहा है यार
` दस दिनों के अंदर इंतजाम नहीं हुआ तो मैं मर जाउंगा´
जानना चाहेंगे की वह क्या बात करना चाह रहा था । दरअसल इन दिनों वह बड़ी शिद्दत से `कुछ´ पाने की जुगत में जुटा था । जिस्मानी जरूरतों को पूरा न हो पाने की वजह से वह बेहद परेशान चल रहा था ।
दांत निपोरते हुए
हर शŽद को चबाते हुए
बोला
`सावन आने के बाद मन बहकने लगा है´
मेरे भाई
चमकती ,दमकती ,दहकती
चौड़ी होती आंखों
बताया
कई दफे, कईयों के साथ यहां-वहां कुछ कोशिश भी की।
पर पाने में कामयाब नहीं हो पाया ।
अब तुम बताओ
मुझे क्या करना चाहीए ?
महोदय का मानना है कि उनकी जिस्मानी जरूरत उनके कामकाजी दिमाग पर हावी होने लगी है । सो , उन्हें इसे पूरा करने के इंतजाम करना चाहीए । वैसे बीच में कुछ दिन बेहतर `व्यवस्था´ भी हो गई थी । सो, कुंवारों लड़कों वाली आदत भी नहीं रही। अब तो पूरा और समूचा जिस्म ही चाहीए । उन्हें । बातों बातों मेंं ही उनकी लपलपाती जीभ बाहर निकलने लगी । जैसे गर्म गोश्त , बहकते जज्बातों , उमड़ती घुमड़ती भावनाओं और फड़फड़ाते जिस्म का साथ पा लेने के मादक एहसास से सराबोर हो उठीं हो ।
कहने लगेे भाई ।
आपने इस मौसम में सेक्स किया है।
इससे पहले की कोई जबाब दे पाता
एक और सवाल उन्होंने दाग दिया
अच्छा
यह बताओ कितने दिन पहले किया था ?
मेरे मुंह खोलने से पहले ही
गजब की फुतीü दिखाते हुए
मूलाधार केंद्र से निकली उर्जा से लबरेज होकर
भाईसाहब ने हाथें भिंच ली ।
बीते दस मिनट से जारी जिस्मानी बातचीत में
पहली बार धीरे से बोलें ।
बहुत मजा आता है ना !!!
जनाब लगातार बोले जा रहे थें
बार-बार
लगातार
जिस्म !
जिस्म !!!
बेदाग जिस्म !!
मादक और मोहक जिस्म !!
समानुपाती औरताना जिस्म!!!
बस जिस्म ही बन गए थे वह
कुछ देर तक ।
फिर चुप हुए
हाथ मुंह सिकोड़ा ,
कहा
यार
कीभी जी. बी. रोड गए हो ?
तुम तो दिल्ल्ाी में बहुत दिनों से हो
कितने में मिलती है ?
कैसी मिलती है ?
यह बताओ ?
लालकिले से किधर जाना होगा ?
मुझे रास्ता मालूम था ।
है भी ।
उन्हें बताया ।
तो चौकें
कहा
मेेरे भाई !
तुम भी ? ! ? !
Sunday, July 27, 2008
जवान देश बूढ़े लोग
-उन दोस्तों के लिए जो समय से पहले बूढ़े हो चले हैं ।
मेरे कुछ दोस्त हैं । पैदाईश की उम्र को पैमाना मानें तो माशाअल्लाह गबरू-जवान कहलाने लायक हैं । पर जवानी उन्ामें झलकती नहीं । जोश नहीं मारती । पतला वाला तीस के करीब पहुंच चुका है । मोटा दो साल पीछे है। ढलती शाम के साथ ही दोनों के कंधे झुक जाते हैं । चेहरे पर पीलापन हावी होने लगता है । बुझा-बुझा सा दिखता चेहरा चिल्ला चिल्ला कर बुढ़ापे से उनकी बढ़ती नजदीकी को बयान करते हैं ।
बात महज जवानी से दूर होते बॉडी-लैंग्वेज तक रूकी रहती तो खैर था । क्यां बताएं इन दिनों उनकी बातचीत का लहजा भी खतरनाक हो चला है । महज चार-पांच साल पुरानी नौकरी में पचास साल का अनुभव पा चुके इन दोस्तों के तर्क भी अजब गजब है । हर ओर छाई उदासी और खतरे को खुद से सबसे पहले जोड़ने लेत हैं । मुझे बहुत फिक्र है मेरे भाईयों । क्या होगा तुम दोनों का ।
उनको देख ऐसा लगता है जैसे छत के उपर मुंडेर पर काला लिहाफ ओढ़े खतरनाक बुढ़ापे का साया उन्हें लगातार पास बुला रहा है । झूलते चेहरों वाले, सफेद बालों और थकी हुई आंखों पर चश्मा लगाने वाला वह चेहरा डरा रहा है । और जवानी । जैसे दूर किसी छत पर खड़ी अलमस्त जवान औरत की तरह बन गई है। पास आने को तरसा रही है । लगातार बढ़ती दूरी का नशतर चुभा रही है ।
वैसे यह इन दो दोस्तों की बात नहीं है । ऑफिस में जुटे कामकाजी सहयोगियों पर भी ढलती हुई उम्र का असर दिखता नजर आ रहा है । मिला-जुलाकर एक बेचारगी सी झलकती है सबके चेहरे पर । लड़ने को कोई जज्बा नहीं बचा है किसी में । पैदा हो गए थें । सो किसी तरह समय काटने के लिए खा पका रहे हैं ।
सच कहूं तो गहरे अर्थों में यह मुल्क भी बूढ़ा हो चला है । समय से पहले रिटायरमेंट प्राप्त कर चुका बुजूआü मुल्क । विश्वास नहीं होता हो , अपने करीब मौजूद किसी छोटे बच्चे से सवाल पूछीए । जिंदगी और मौत के बारे में उसके विचार जानने की कोशिश कीजिए । उससे तीन गुणे ज्यादा उम्र का पढ़ा लिखा विदेशी भी उतना नहीं बता पाएगा । जितना हमारे देश का छोटा बच्चा जिंदगी और मौत के बारे में अधिकार भाव से बोलता नजर आएगा ।
आप शायद इसे संस्कारों की संज्ञा देंगे । पर मैं इसमें खो गए बचपन की बालपन को देखता हूं । खेलने कूदने की उम्र में ही गंभीर हो चला है । तत्व ज्ञान जैसी बातें करता है। और हम मुग्ध हैं । वाह! इट हैपेन्स ओनली इन इंडिया ।
मैने सुना था कि आबादी के उम्र के लिहाज से भारत एक युवा देश है । देश की साठ फीसदी आबादी जवान कहलाने लायक है । हां उम्र के पैमाने पर सही है । पर दिमागी तौर पर सब के सब मौत का इंतजार करती हुई एक बेचारी भीड़ से ज्यादा कुछ नहीं है । मामला चाहे कोई भी हो । कोई लहर पैदा नहीं होती । संसद में पैसे लेकर सरकार गिराने की बात हो । बंगलुरु या अहमदाबाद में बम Žलॉस्ट की बात हो । सड़क खराब हो जाने की बात हो । या सरेशाम किसी युवति की इज्जत के साथ होने वाले खिलवाड़ की बात हो । हम पर कोई असर नहीं पड़ता । जब तक हम सुरक्षित हैं । हमें परवाह ही नहीं । आखिर हम जवान जो ठहरे ! इंडिया इज यंग ! ! ! !
जानता हूं अभी भी यकिन नहीं आता होगा । मान ही नहीं सकते । विश्व गुरू रह चुके हैं हम । ऐसे कैसे मान लेंगे । मैंने कहा और मान लें । अरे मैं कौन हूं । एक छोटा प्रयोग करके देखीए । देश और दुनिया में जुड़ी बातों पर लोगों के विचार सुनिए । खाट पर पड़े चर चर करने वाले बुढ़ापा राग और निंदा रस में डूबी व्या�याओं के अलावा कुछ और नहीं दिखेगा । एक भी आदमी ऐसा नहीं दिखता या बोलता कि हम नया क्या कर सकते हैं। पता नहीं क्यों उम्र से जवान लोग भी जवानी की भाषा भूल गए हैंं ।
हर मोड़ पर । हर चेहरे पर एक लाचारी दिखती है । बस यूं ही घीसटते रहने की लाचारी । कोई रिस्क लेने को तैयार नहीं है । यही नहीं कोई आगे बढ़े तो एक दो नहीं चालीस लोग उसे रोकने को आगे आ जाते हैं । मां-बाप रोकते हैं । भाई बहन लगाम लगा देतेे हैं । दोस्त समाज सब जुट जाते हैं । अरे रोको इसे । यह पागल है जवानी की बात करता है । अरे कुछ नहीं होगा । बहुत आए और बहुत गए ।
बसों में सफर करते वक्त आस पास लोगों के चेहरे देखीएगा । एक बेचारगी सी दिखेगी । सबके चेहरे पर सम भाव बेचारगी । साथ साथ लटके रहने का भाव । उ�मीद बस दो ही है । किसी तरह पास वाली सीट पर बैठने का अवसर मिल जाए । या जल्दी बस स्टॉप आ जाए ।
बूढ़ा मुल्क और सोच भी क्या सकता है । मजेदार बात यह है कि लोग तर्क खोज लेते हैं । तर्क के रंग से बाल काले करने का प्रयास करते हैं । कहते हैं कि देखों जिंदगी ऐसे ही चलती है भाई । देखो बाल काले हैं हमारे । जवानी बची है यार । थोथे तर्क । पर कमजोर हाथों में भारी तलवार कितनी देर टिकती है । खुद ही सर या पांव पर दे मारते हैं हम सारे ।
अपने एक बुढ़ाते दोस्त के छोटे भाई की कहानी सुनाऊं आपको । जिंदगी और मौत के बारे में अधिकार भाव से बोलते नजर आते हैं । नौकरी जो करते हैं उसकी फिक्र कम है । जज्बा नहीं पेट भरने का रूटीन है । बेहतर तरीके से कैसे काम करते हैं यह पूछते ही चुप हो जाते हैं । पर जिंदगी और मौत पर चर्चा छेड़ीए कि उनका व्या�यान शुरू हो जाता है । मेरी एक महिला मित्र हैं। हां, वाकई हैं । उनकी छोटी बहन भी है । एक दिन शुरू हो गइंü । जिंदगी और जिंदगी के बाद की जिंदगी पर । उनकी रूचि देखकर मैं भी दंग रह गया । पूछा, जिंदगी को कौन सी दिशा देना चाहती है । बोलीं , होय वही जो राम रची राखा। अब ऐसे लोगों से हम जवानी की उ�मीद क्या करें । होय वहीं , जो राम रची राखा। हां अधूरा छोड़कर लिखना बंद कर रहा हूं । बाकी जल्द ही । किस्तों में । यहीं ।
जिन्दगी न जाने किस मोड़ पर ले आयी है,
जिन्दगी न जाने किस मोड़ पर ले आयी है,
अब तो अपने भी बेगाने से लगने लगे हैं...
मन मन्दिर में बिठाकर जिन्हें पूजा था मैंने,
उन्हें इस बात का अहसास तक नहीं कि मुझ पर क्या बीत रही होगी.....
दिल का करार न जाने कहां खो गया है,
लेकिन एक वो है कि उन्हें अब लौटना गवारा नहीं....
एक छोटा सा सफ़र दर्द का सैलाब बन जाएगा,
मुझे इस बात का एहसास नहीं था.....
उनका ख़्याल आते ही जहन में पुरानी यादें एक बार फिर से ताज़ा हो जाती हैं,
समय के साथ उनमें भी फर्क आ गया है....
पहले यादों के साथ चेहरा खिल उठता था,
आज वही यादें नश्तर चुभने का काम करने लगी हैं....
तनहा जीना मुमकिन सा लगने लगा है,
अब तो ऐसा लगने लगा है कि उनकी याद में मेरे जीवन कि डोर टूटती जा रही है........
Friday, July 4, 2008
खबरों की डुगडुगी
खबरों की डुगडुगी
खबरिया जगत में कई कैरेक्टर होते हैं. खबरों को लेकर उनकी सोच एक खास किस्म की होती है.कई बार इन बडे लोगों का व्यक्तिव का असर उनके संस्थान पर भी दिखने लगाता है. यहां पेश की जा रही कहानी मीडिया की नई सोच रखने वाले एक ऐसे ही संपादक की कहानी है.जो खबरों को एक खास नजर से देखता है. एक संपादक के अलावा वह एक मालिक का नौकर भी है. जिसका काम अखबार बेचना और अपनी टीम के लोगों की नौकरी बचाए रखना भी है.तो लीजिए पेश है खबरों को तय करने की प्रक्रिया से जुडी एक कहानी वह भी बिलकुल नए अंदाज में. यहां यह बताना जरूरी है कि यह कोई व्यक्तिगत कहानी नहीं है और ना ही इस कहानी से मीडिया जगत में किसी को कुछ संदेश देने की कोशिश है.यह घटनाक्रम को एक अलग नजर से देखने की कोशिश मात्र है पसंद आए तो बताइएगा जरूर
शुक्रिया
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खबरों की डुगडुगी
समय सुबह 10:25 बजे स्थान एक बडा अखबार का भव्य कार्यालय, बाहर से बेहद आलीशान दिखने वाले इस आफिस के तीसरे माले पर मीटिंग रूम तेजी से खुलते और बंद होते दरवाजों से अखबार के विभिन्न्ा एडिशनों में काम करने वाले बडे और नामी गिरामी संपादक पहुंच रहे हैंसबके हाथों में फाइल, कंधे पर लैपटाप, चेहरे पे तनाव और माथे पर पसीना झलक रहा हैअंदर आते ही हाय, हलो बोलकर सब जल्दी से लैपटॉप ऑन करने में जुटे हैं कोने में बैठा एक यूनीट का स्थानीय संपादक शांत है और सबकी हरकतों को गौर से देख रहा है
10:30 पर उन तमाम संपादकों का से भी बडा संपादक कक्ष में दाखिल होता है
तेज नजरों से वह सबकी ओर देख कर आंखों से ही बैठ जाने का ईशारा करता है
(यहां यह बताना जरूरी है कि इस मीडिया संस्थान में इस बडे संपादक की तूती बोलती है, अखबार में उसकी मर्जी के बगैर कुछ नहीं छपता, एक आदमी भी इधर से उधर नहीं किया जा सकता, मीडिया जगत में अनोखी हरकतों के कारण यह संपादक बेहद चर्चित व्यक्ति रहा है, उसे पारंपरिक अंदाज में काम करने की आदत नहीं है,कभी तेज बोलता,अट़टाहास करता,तो कभी तमाम संपादकों को हिंदी की मशहूर और सर्वसुलभ गालियों से भी नवाजता......)
बहरहाल वापस वहीं लौटते हैा
बिग बॉस को आया देख पहल सब खडे हो गए और बाद बैठ गए . कुछ अभी भी रूमाल से चेहरा पोछते रहे थे
तभी .. .
बैठते ही बडा संपादक चिल्लाया
क्या अखबार निकाला है.?
ऐसे भला कहीं काम होता है क्या. !!!!
आखिर कब सुधरेंगे आप लोग !!!!
सन्नाटा सा पसर गया एकाएक
सब शांत हो गए.
कुछ की घिघगी बन गई,,,
तभी
बडे वाला संपादक हसा.......
हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा !!!!!@@@@!!!!!!!
बाकी संपादक चोरी से एक दूसरे की शक्ल देखने लगे @@@@@
हा हा हा हा हा हंसी लगातार तेज होती जा रही थी
जमूरे..
जमूरेएएएएए.....
जमूरेएएएएएएएएएए......
सब समझे और सब एक साथ चिल्लाए
उस्ततााााााााााााााद .....
क्या खबर लाए हो संपादकों
बारी बारी से बताओ
लाल शर्ट वाले पडोसी राज्य के स्थानीय संपादक की ओर पहला इशारा हुआ
और ठाकुर क्या खबर है आज
उस्ताद
वह हमारे यहां आज सुबह सडक दुर्घटना हुई है .
चार लोगों की मौके पर ही मौत हो गई.
हमारे यहां आज मेन लीड इसे बना सकते हैं;
रिपोर्टर लगा दिए हैं. कई साइड स्टोरी भी होगी
अच्छा यह बताओ उनकी प्रोफाइल क्या है बडे वाले संपादक ने पूछा
जी सर मीडिल क्लास के हैं घर में एक ही कमाने वाला था वह भी दुर्घटना में मर गया
हमममम
यह क्या बकवास है बडे वाला चिल्ला उठा
कितने दिनों से कह रहा हूं हमें अपमार्केट खबर चाहिए
अखबार गरीब लोग नहीं पढते.....
ठाकुर साहब और यह जो लाल रंग का शर्ट आप पहन कर आएं है वह भी ......
वह फिर चिल्लाया
और पंडत जी आपके इलाके का क्या हाल है क्या बेचेगो आप
उसने कहा कि हमारे यहां आज कुछ बडे नेता पहुंच रहे हैं प्रदर्शनी में भाग लेने आ रहे हैं
बडे वाले बिफर पडे
आप लोगों को समझते समझते उम्र गुजर जाएगी ...
यह अखबार है नेताओं के दलाली का अड़डा नहीं...
आप लोगों से कुछ नहीं होगा.... घर चले जाओ...
काशी में मकान बनवा लीजिए आप.....बुढापे का इंतजाम कीजिए...
बांयी हाथ की ओर गुलाबी शर्ट पहने स्थानीय यूनीट का संपादक अभी भी शांत था.
उसके चेहरे पर एक मुस्कान तैर रही थी..
कुछ कहने का मौका खोज रहे थे
बडे वाले ने ताड लिया
बोलिए मिसिर जी
जी सर बडी खबर यह है कि संबानी परिवार के मुखिया का प्यारा विदेशी कुत्ता मर गया है,
साहब विदेश दौरा कैंसल कर लौट रहे है
कोई पांच लाख का कुत्ता था, उसका अंतिम संस्कार होगा,
चैनलों पर यही लाइव चल रहा है
मेरे रिपोर्टर भी वहां उनके बंगले के बाहर तैनात हैं
अपमार्केट जगत से आज इस पर खूब चर्चा हो रही है
हम्मम
मुस्कुराए
पठनीयता है इसमें
बेची जा सकती है यह खबर
और संबानी साहब की ओर से हमें हर साल करोडों का विज्ञापन मिलता है इसे लीड बनाया जाए
.....
कुछ देर बाद बैठक समाप्त हो जाती है
.....
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उधर टेलीविजन चैनलों पर कुत्ते के मौत को लेकर हाय तौब मची हुई थी
कुछ "शोक में संबानी" तो कुछ चैनल "संबानी का साहब" जैसे कैच वर्ड के साथ खबर चला रहे थे
तेज चैनल पर उस कुत्ते और संबानी साहब की पुरानी तस्वीर को एक्सक्लूसीव बनाकर दिखाया जा रहा था
वहीं खुद को गंभीर खबरों के लिए मशहूर चैनल पर कुछ पशु विशेषज्ञों से बातचीत की जा रह रही थी
एक तीसरे चैनल पर मशहूर फिल्मी हस्तियों के पालतू कुत्तों से प्रेम की खबर प्रसारित हो रही थी
जबकि एक और चैनल दुनिया के कुत्तो और उस खास कुत्ते के ब्रीड पर खबर दिखा रहा था
इस बीच
एक चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज दिखी
"संबानी भारत पहुंचे "
मुंबई एयरपोर्ट से उतरते संबानी का फुटेज दिखाया गया
आधे स्क्रीन पर उस कुत्ते के साथ खेलने में जुटे संबानी साहब के पुराने विजुअल फाइल शिर्षक से दिखाए जा रहे थे
संवाददाता की आवाज गूंजी
" संबानी साहब भारत पहुंच गए हैं . जैसा की आप जानते हैं कि अपने पालतू कुत्ते
और घर के सबसे अहम सदस्यों में शामिल "शान" की मौत पर संबानी परिवार को
गहरा धक्का लगा है .... शान की मौत की खबर को सुनकर
संबानी ने सारे कामकाज छोड भारत लौटने का फैसला लिया.....
..एयरपोर्ट से सीधे वह अपने घर जाएंगे ...परिवार वालों से मिलेंगे ...
और कुत्ते को अंतिम विदा देंगे
आईए हम जानते हैं खुद संबानी साहब से कि उन्हें कैसा लग रहा है
" संबानी साहब शान के जाने के बाद आप कैसा महसूस कर रहे हैं ? "
"संबानी साहब" "संबानी साहब" "संबानी सा हब" "संबानी सा ह ब"
भीड में उस संवाददाता की आवाज गुम हो गई
टीवी एंकर सतर्क हो बोला लगता है "संपर्क टूट गया है" हम वापस लौटेंगे हमारे संवाददाता के पास जो एयरपोर्ट पर मौजूद है
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दूसरे चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज थी
संबानी अपने बंगले पहुंचे
यहां घर के अंदर का दश्य दिखाया जा रहा था
शान के शव सफेद चादर में लिपटा था
परिवार के सदस्य आंखों पर काला चश्मा लगाए मौजूद थे
संवाददात की आवाज विजुअल के साथ
स्क्रीन पर एक्सक्लूसीव बोल्ड और लाल अक्षरों में
"जैसा की आप देख सकते हैं यहां खामोशी है. पूरा परिवार सदमें है. संबानी परिवार के लोग उसे घर का सदस्य मानते थे"
इस बीच बडी काली गाडी में सवार संबानी साहब वहां पहुंचे
संवाददाता शांत हो चुका था, टीवी एंकर बोलना शुरू कर चुका था,
"जैसा की आप देख सकते है संबानी साहब वहां पहुंच चुके हैं"
यह पोर्टिको में गाडी से उतरते हुए संबानी साहब,,
सामने उनके भाई राहत संबानी दिख रहे हैं,
साथ में हल्के हरे सूट पहने हुए उनकी पत्नी भी वहां मौजूद है
संबानी को कैमरा फॉलो कर रहा है
शान के पास जाकर वह उसके सर को छूते हैं
अभी वक्त हो चला है एक ब्रेक का ..
ब्रेक के बाद जारी रहेगा संबानी की कहानी. हम बताना चाहेंगे की संबानी साहब के घर के अंदर
केवल हमारा चैनल ही पहुंच पाया है...
म्यूजीक...पर्दे पर "सदमें में संबानी" दिखता है ....
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अरे मिसिर जी यह बातएं कि
यह कुत्ते की केस हिस्टी क्या है
गुलाबी शर्ट वाले संपादक बडे वाले संपादक के कमरे में बैठ कर चाय पी रहे थे
सामने टीवी एक विशाल स्क्रीन पर चार चैनलों पर खबर चल रही थी
हालांकि आवाज एक ही आ रही थी
मध्यम आवाज करीब करीब फुस्फुसाहट सी
सर वह यह कुत्ता कभी
ब्रिटेन राजमहल में रहता था
अच्छा
जी एलिजाबेथ की सबसे प्यारी कुतिया इसकी बहन है
ओह
हां और अब तक यह चैनल वाले पता हीं नहीं कर पाएं है
हा हा हा
एलिजाबेथ की कुतिया की बहन हम्म्म्म , हम जो सोच रहे हैं उससे भी बडा मामला हो सकता है
आप नए जमाने की खबरों को खूब समझते हैं मिसिर जी
यही वजह है आपको हमने लोकल यूनीट का इंचार्ज बना रखा है
वैसे मालिक भी आपके काम से खुश है
वो आपने ...
जी जी समझ गया
सर तो मैं चलूं
हां मिसिर जी
शाम तक कोई और घटना नहीं घटी तो यही बडी खबर बन सकती है
वैसे एक बात बताएं
यह गुलाबी शर्ट कहां से लिया,किते का है
सर वो यू ही....
चेहरे पर मुस्कान और बॉस का विश्वास कंधों पर लिए मिसिर जी चेंबर के बाहर हो लिए
उधर चैनलों पर जूतमपैजार की नौबत आ चुकी थी
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बडे बास के चेंबर से संपादक जी को निकलता देख
स्थानीय ब्यूरो के रिपोर्टर सतर्क हो गए थे
वह सीधे रिपोर्टरों के पास पहुंचे
और कहा कि संबानी का कुत्ता कोई मामूली कुत्ता नहीं है
वह आज की सबसे बडी खबर है
मुझे हर पहलू पर खबर चाहिए
कब आया, कहां से आया, भारत में हर साल कितने कुत्ते विदेशों से मंगाए जाते हैं
खरीदता कौन है कैसे पालते हैं विदेशी और भारतीय मालिकों में बेहतर कौन है पैकेज चाहिए सब पर
याद रखों सात बजे तक सारी खबर मेरे पास होनी चाहिए,,,
वहां संबानी के बंगले पर कौन गया है
सर वो सुमन गई है
सुमन उस लडकी को क्यों भेज दिया
सर उसने पहले भी कुत्तों पर कई स्टोरी की है
इसलिए भेज दिया
वैसे एक रिपोर्टर स्टॉक बाजार भेजे
दूसरे को पेट शॉप पर भेजों देखों आज पेट क्लीनिक में आने वाले कुत्तों की संख्या रोजाना से कितने फीसदी ज्यादा रही
जी सर
और हां
शाम सात बजे तक सारी खबरें मिल जाएं
सब रिपोर्टर रवाना हो गए
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साला संपादक जी सठीया गए है
अब हम कुत्तों की खबर करेंगे और क्या
पता नहीं अखबार का क्या होगा
यह मालिक की आंखें बंद क्यों हो गई है
साला चुतिया बना रहे है उसे लोग
इसे दिखता नहीं क्या
बाहर निकले रिपोर्टर कुछ ऐसे ही बात कर रहे थे
आओ गौरव
सिगरेट पीते हैं
अब आप ही बताइए गौरव क्या करें
कुछ नहीं यार शांत हो जाओ सौरभ मेरे भाई
यह दुनिया ऐसे ही चलती रहेगी
हम यहां काम करने आए है
सौरभ ने हामी जातई
हां हलवाईं हैं हम...जैसा कहोगे वैसा ही खाना बनाएंगे.
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उधर चैनलों पर कुत्ते से जुडी बाते बताई जा रही थी
अचानक जानवर विशेषज्ञों की कमी सी हो गई थी
सो रिपोर्टर और एंकर सुबह की रटी रटाई बातों को दोहरा रहे थे
आपका कुत्ता हमारा कुत्ता संबानी का कुत्ता हर ओर कुत्ते दिखाई पड रहे थे
विज्ञापनों में भी कई कुत्ते अचानक से उभर कर बाहर आने लगे थे
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शाम पांच बजे का वक्त हो चला होगा
सूरज की रोशनी हल्की होना शुरू हो गई थी
हर की एक गली में दो बच्चे मजाक कर रहे थे अरे यार
तेरी शक्ल तो शान से मिलती है वे
अरे साला ऐसी किस्मत मेरी कहां
संबानी का कुत्ता है साला
मर गया तो देश जान गया
बेटा
टीवी में दिखा रहे हैं सारे चैनल वाले
एसी कमरा था उसका
दो नौकर थे तुम्हारे जैसे
रेड मीट नहीं खाता था
संबानी जब भी भारत में होते उसे खुद ही खाना खिलाते थे
झूठ दिखाते है
तीसरा दोस्त जबरन उनकी बहस में शामिल हुआ
बोला साले कोई भी समझदार आदमी के पास बीबी को खाना खिलाने का वक्त नहीं होता
वह क्या कुत्ते को खिलाता होगा ,,, यह साले चैनल वाले भी हमें चुतिया बना रहे हैं
झूठे साले
हा यार बाकी दोनों सहमती में सर उठाते हैं
गौरव इन तीनों की बात सुन रहा था
तभी मोबाइल पर उसकी गर्ल फ्रेंड का फोन आया
कहां हो
कुते के पीछे
कुत्ते के पीछे कौन तुम या तुम्हारे पीछे कुत्ता पडा है सही से बताओ यार
( आगे जारी रहेगा...)
Thursday, July 3, 2008
इंतज़ार
विकसन भाई लगातार लिख रहे हैं । लगता है कभी ख़ुद खबर लिखने वाले इस सज्जन की कविताओं पर खबर या आलेख लिखने का समय करीब आ गया है। हमारी शुभ कामनाएं आपके साथ हैं। पेश है उनकी एक और रचना खास गुलज़ारबाग पर ।
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ऐसी चोट खाई है दिल पर कि अब तो,
दर्द का अहसास भी जाने लगा है..
तुम्हारा इंतज़ार करना मेरी आदत हो गई है,
पर दिल यह बात मानने को तैयार ही नहीं है..
कि शायद तुम अब कभी नहीं आओगे,
तुम्हारे आने के इंतज़ार में जैसे-तैसे दिन तो कट जाता है..
पर शाम होते ही हसरतें एक बार फिर से अंगड़ाई लेने लगती हैं,
रात इतनी लम्बी व तनहा होती है..
कि उसे करवट लेकर काटना भी मुश्किल हो जाता है,
दिल ने भी अब जवाब देना बंद कर दिया है..
शायद उसे भी नहीं पता,
कि में कौन सा रिश्ता निभाने के लिए
यह सारी ज़द्दोज़हद कर रहा हूं..