Monday, July 28, 2008

मेरे भाई ! तुम भी !

पहले दो बातें । `मेरे भाई ! तुम भी ! ´ की Žलॉगिया पोस्टींग के बाद मेरे पास कई फोन आए । भाई लोगों ने दो सहानुभूति भरे मेल भी भेजे हैं । बगैर चेहरे वाले एनॉनमस साहबों ने कुछ कमेंट भी बतौर भेंट भेजी हैं । जिसमें इसे बेहद गंदी और अश्लील कहानी बताकर हटा लेने को कहा गया । मुझे और मेरे ब्लॉग को गंभीर बताया गया है । जबकि इस कहानी को ओछा कहा गया । निर्णय सुनने वालों ने इसे मेरे प्रतिष्ठा या इमेज के अनुरूप नहीं होने की बात पर खूब जोर दिया है। लोक लज्जा की भरपूर दुहाई दी । कहा इसे वापस ले ले । पर मैंं ऐसा नहीं करूंगा । क्योंकि मैं सेक्स को ओछा या छोटा या हल्का फुल्का नहींं मानता । हम भलें ही इसे ज्यादा तवज्जो न देते हों पर हम इससे और यह हमसे अलग नहीं है । मैं पक्ष और विरोध से भरे सेक्स पर कोई विमर्श या बहस में नहीं पड़ना चाहता । हां इसके सर्वव्याप्त दैहीक व्याकरणों से अलग नए आयामों की बात करना जरूर चाहूंगा । और अगर आप मानते हैं कि यह सब बेकार है । सेक्स्ा के बारे में बात करना गैर गंभीर है तो एक विनम्र विनती है । उस स्थिति में सबसे बेहतर यही होगा कि इस ब्लॉग का रुख मत कीजिएगा । क्या पता उसमें कोई आपकी कहानी ही दिख जाए । उ�मीद है आप समझेंगे ।




मेरे भाई ! तुम भी !


बीती रात नोएडा में कहीं बैठा था

टाइमपास करने का मूड था

रोचक गप्पों का सुहाना दौर जारी था

निंदा रस में डूबे बातें कर , मजे लूट रहे थे

गप्प हांकने

और

हंसने- हंसाने के उस दौर में

अचानक

साथ बैठा साथी संजीदा हो उठा ।

भर्राए हुए आवाज में

हाथ उठाते हुए बोला

!!!!!! यार ! !

!! इससे तो मौत भली होगी !!!

हवा में ही अजब-गजब तरीके से हाथ हिलाते हुए उसने

कई तरह की मुद्राएं बनाई

कुछ बेहद श्लील, शालीन और

कुछ हद से ज्यादा अश्लील

कई

भद्दी भी।

आरामदायक कुर्सी पर आसन लगाए

वह पैरों को फुदकाने लगा

तेजी से उछलने लगा ।

फिर

चिल्लाया

!!! कुछ हो ही नहीं रहा है यार

` दस दिनों के अंदर इंतजाम नहीं हुआ तो मैं मर जाउंगा´

जानना चाहेंगे की वह क्या बात करना चाह रहा था । दरअसल इन दिनों वह बड़ी शिद्दत से `कुछ´ पाने की जुगत में जुटा था । जिस्मानी जरूरतों को पूरा न हो पाने की वजह से वह बेहद परेशान चल रहा था ।

दांत निपोरते हुए

हर शŽद को चबाते हुए

बोला

`सावन आने के बाद मन बहकने लगा है´

मेरे भाई

चमकती ,दमकती ,दहकती

चौड़ी होती आंखों

बताया

कई दफे, कईयों के साथ यहां-वहां कुछ कोशिश भी की।
पर पाने में कामयाब नहीं हो पाया ।

अब तुम बताओ

मुझे क्या करना चाहीए ?

महोदय का मानना है कि उनकी जिस्मानी जरूरत उनके कामकाजी दिमाग पर हावी होने लगी है । सो , उन्हें इसे पूरा करने के इंतजाम करना चाहीए । वैसे बीच में कुछ दिन बेहतर `व्यवस्था´ भी हो गई थी । सो, कुंवारों लड़कों वाली आदत भी नहीं रही। अब तो पूरा और समूचा जिस्म ही चाहीए । उन्हें । बातों बातों मेंं ही उनकी लपलपाती जीभ बाहर निकलने लगी । जैसे गर्म गोश्त , बहकते जज्बातों , उमड़ती घुमड़ती भावनाओं और फड़फड़ाते जिस्म का साथ पा लेने के मादक एहसास से सराबोर हो उठीं हो ।

कहने लगेे भाई ।

आपने इस मौसम में सेक्स किया है।

इससे पहले की कोई जबाब दे पाता

एक और सवाल उन्होंने दाग दिया

अच्छा

यह बताओ कितने दिन पहले किया था ?

मेरे मुंह खोलने से पहले ही

गजब की फुतीü दिखाते हुए

मूलाधार केंद्र से निकली उर्जा से लबरेज होकर

भाईसाहब ने हाथें भिंच ली ।

बीते दस मिनट से जारी जिस्मानी बातचीत में

पहली बार धीरे से बोलें ।

बहुत मजा आता है ना !!!

जनाब लगातार बोले जा रहे थें

बार-बार

लगातार

जिस्म !

जिस्म !!!

बेदाग जिस्म !!

मादक और मोहक जिस्म !!

समानुपाती औरताना जिस्म!!!

बस जिस्म ही बन गए थे वह

कुछ देर तक ।

फिर चुप हुए

हाथ मुंह सिकोड़ा ,

कहा
यार


कीभी जी. बी. रोड गए हो ?

तुम तो दिल्ल्ाी में बहुत दिनों से हो

कितने में मिलती है ?

कैसी मिलती है ?

यह बताओ ?

लालकिले से किधर जाना होगा ?

मुझे रास्ता मालूम था ।

है भी ।

उन्हें बताया ।

तो चौकें

कहा

मेेरे भाई !

तुम भी ? ! ? !

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