Sunday, June 5, 2011

हे महान मनमोहन तुम क्योँ जिन्दा हो ?

मैं योगगुरु स्वामी रामदेव के साथ नहीं हूं। मैं कांग्रेस और यूपीए-टू की ताकतवर सरकार के साथ भी नहीं हूं। मैं आम आदमी हूं जिसे रामदेव को जबरन दिल्ली से भगाया जाना अच्छा नहीं लगता। मैं वो आम आदमी हूं जो सत्ता के दमन चक्र का हर बार शिकार होता है।

चार जून की रात जो कुछ भी हुआ उसके बाद मैं खुद को ठगा महसूस करता हूं। शायद मेर भी मन में इस सत्ता के प्रति एक नफरत जन्म लेने लगी है। मैं इस बात को समझता हूं कि अनशन करना बुरा नहीं है। मैं इस बात को भी समझता हूं कि अनशन करने वालों पर जुल्म करना अच्छा नहीं है।

कई दशक पहले आजादी के आंदोलन के दौरान भी सत्तासीन फिरंगियों ने हमपर जुल्म किए थे। मैं रामदेव के अनशन को आजादी के आंदोलन के बराबर का दर्जा नहीं देता। पर जो सलूक उनके साथ किया गया वो निश्वित रूप से सही नहीं थी। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसी बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
मुझे लगता है कि सत्ता का अपना स्वरुप होता है। और मनमोहन सिंह की सरकार निहायत फिरंगी तौर तरिकों का इस्तेमाल करती है। बीते दिनों जब भी सरकार के मंत्रियों की करतूते सामने आई हो। या फिर अन्ना हजार का अनशन हो। हर बार सरकार और उसके मंत्रियों का जो रवय्या दिखा। उसे देख कर लगा ही नहीं कि वो सभी बड़े लोग इसी गरीब देश के निवासी हैं ।
ऐसा लगता है कि सत्ता के नशे में चूर लोगों को केवल वही बात सुनाई पड़ती है। जो वह सुनना चाहते हैं। नहीं तो रामदेव के साथ जो सलूक किया गया वह कतई बर्दाश्त के काबिल नहीं था। मुझे आश्चर्य नहीं होगा अगर इस घटना के बाद भी मनमोहन सिंह सामने आकर यह कहें कि हम एक गठबंधन की सरकार में है और मुझे इस बार में ज्यादा नहीं पता। मेरे देश के हे महान नायक मनमोहन तुम क्योँ जिन्दा हो ?

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