Saturday, June 2, 2012

रामू चाचा, रामू चाचा



रामू चाचा, रामू चाचा 
तुम्हारे आंगन में 
वो बरगद का बड़ा 
पेड़ हुआ करता था,
जिस पर हम सभी 
बच्चे झूला झूलते थे
जिस पर पूरे गांव की 
चिड़िया घोंसला बनाया करती थी
लगता है वह बूढ़ा 
बरगद का पेड़ 
समाजवाद की तरह
 सूख गया है
अब तो गांव में 
अलग-अलग 
जातियों के पेड़ हैं। 
जो केवल अपनों को ही 
छाया देते हैं। 
कुछ पेड़ धर्म के भी हैं
जो रोज प्रवचन करते हैं
जिनकी अजानों से 
एक ही छाया निकलती है
रामू चाचा, रामू चाचा
एक दिन यह पेड़ भी 
बरगद की तरह सूख जाएगा
अच्छा है कि बच्चे
अब इन पेड़ों के नीचे नहीं खेलते। 


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