Friday, August 3, 2007

तुम भी लम्हा बुनो ना....


एक लम्हा है..

प्यार का..

हौले से छू..

लो ना...

कब से..सूना है...

लम्हा.. अकेला सा...

सरगम..होठों पर..

सजने दो ना...

रूठ गया है..

वो लम्हा...

अल्ह्ड़ सा...

तुम जरा...

मना लो ना..

बहुत याद आता है..

वो भीगा लम्हा..

तुम ख्वाब में..

बुला लो ना...

गिरा है..

वक्त की शाख से..

एक लम्हा फ़िर..

तुम किताब में...

रख लो ना..

सर्द रात में..

ठिठुरता है लम्हा..

तुम बांहों में...

ले लो ना....

बरसता है...

बादल सा लम्हा..

तुम भी संग...

भीग लो ना...

वो उदास सा...

बैठा है लम्हा...

तुम कोसा सा...

बोसा ले लो ना..

वो उड़ चला लम्हा..

फ़िर बंजारा सा..

आओ तुम भी..

जरा संग चलो ना..






11 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत कोमल और सुन्दर रचना, बधाई.

36solutions said...

सुन्‍दर

वो उड़ चला लम्हा..
फ़िर बंजारा सा..

बधाई

“आरंभ” संजीव का हिन्‍दी चिट्ठा

अनूप शुक्ल said...

अच्छे अहसास हैं।

azdak said...

ओह, कोतो दारून!

विभावरी रंजन said...

दिल ये मेरा आज कुछ कह रहा है,
सुनो ना.........वैसे शीर्षक पर प्रभाव किसका है,सुजोय घोष का झंकार बीट्स का या विशाल-शेखर का??

Unknown said...

Badi hin masoomiyat bhari rachna!!!!!!

परमजीत सिहँ बाली said...

रचना के रूप में एक बढिया एहसास की अभिव्यक्ति की ।

Divine India said...

This is absolutely not ur work....
not Manya Type....!!!

Divine India said...

अरे भाई प्रबंधक या संपादक साहब ज्याद कष्ट हम जैसे टिप्पणी कर्ता को क्यों दे रहे हो बिंदास होकर सारे द्वार खोल दो… ये बंधा-2 सा मंजर जमता नहीं है…।

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

सचमुच मजा आ गया.....
अहसास..है..

पारुल "पुखराज" said...

bahut khuub...ekdum gulzaarish....aapki post aaina padhi rachna ji k blog pe..impressed