एक लम्हा है..
प्यार का..
हौले से छू..
लो ना...
कब से..सूना है...
लम्हा.. अकेला सा...
सरगम..होठों पर..
सजने दो ना...
रूठ गया है..
वो लम्हा...
अल्ह्ड़ सा...
तुम जरा...
मना लो ना..
बहुत याद आता है..
वो भीगा लम्हा..
तुम ख्वाब में..
बुला लो ना...
गिरा है..
वक्त की शाख से..
एक लम्हा फ़िर..
तुम किताब में...
रख लो ना..
सर्द रात में..
ठिठुरता है लम्हा..
तुम बांहों में...
ले लो ना....
बरसता है...
बादल सा लम्हा..
तुम भी संग...
भीग लो ना...
वो उदास सा...
बैठा है लम्हा...
तुम कोसा सा...
बोसा ले लो ना..
वो उड़ चला लम्हा..
फ़िर बंजारा सा..
आओ तुम भी..
जरा संग चलो ना..
11 comments:
बहुत कोमल और सुन्दर रचना, बधाई.
सुन्दर
वो उड़ चला लम्हा..
फ़िर बंजारा सा..
बधाई
“आरंभ” संजीव का हिन्दी चिट्ठा
अच्छे अहसास हैं।
ओह, कोतो दारून!
दिल ये मेरा आज कुछ कह रहा है,
सुनो ना.........वैसे शीर्षक पर प्रभाव किसका है,सुजोय घोष का झंकार बीट्स का या विशाल-शेखर का??
Badi hin masoomiyat bhari rachna!!!!!!
रचना के रूप में एक बढिया एहसास की अभिव्यक्ति की ।
This is absolutely not ur work....
not Manya Type....!!!
अरे भाई प्रबंधक या संपादक साहब ज्याद कष्ट हम जैसे टिप्पणी कर्ता को क्यों दे रहे हो बिंदास होकर सारे द्वार खोल दो… ये बंधा-2 सा मंजर जमता नहीं है…।
सचमुच मजा आ गया.....
अहसास..है..
bahut khuub...ekdum gulzaarish....aapki post aaina padhi rachna ji k blog pe..impressed
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