Thursday, July 26, 2007

चीख के आगे...

आपकी कानों तक "चीख" पहूंची इसके लिये धन्यवाद !!!
पर ये क्या-"खाया पिया कुछ नही, हाथ गया रूपया". सोचा था आपके अंदर जो कुछ कर गुजरने की चिंगारी है, वह भभकेगी... पर नहीं, आग उठी और बुझ गयी !
कई सवाल उठे. जिनका जवाब अवश्य दूंगा.
पहले तो आप या तुम शब्द की जगह 'हम' शब्द का प्रयोग इसलिये नही किया, क्योंकि इस 'हम' मे मैं भी शामिल हो जाता. तुम शब्द का प्र्योग तुम्हें जगाने के लिये था.
बिहार को ही सबसे पहले इस लिये चुना क्योंकि मै जड से "चीख" को हिलाना चाहता हूं. शुरूआत कहीं से न कहीं से तो करनी ही है, तो क्यों ना वहीं से की जाये जहां से शुरू करने पर पुरे देश पर ज्यादा असर पडे. और भारत एक है. क्रपा कर चीख को प्रांतवाद के दलदल मे ना घुसेडें. काम करना है तो करें, वरना कहीं और नज़र तलाशें.
कहा गया है यह धीमी प्रक्रिया है. पर रफ्तार कौन फूंकेगा ? हम और आप ही ना ! पहले पहल तो करो! अब इन निर्र्थक बातों का कोई लाभ नही. जितना जोश आपने दिखाया है, उसे यूं ही बरकरार रखने की जरूरत है.
सबसे पहले हम बिहार सरकार के इस बेब साईट पर मुख्यमंत्री के नाम अलग अलग इस संदर्भ मे लिखेंगे, ताकी बात राजनीतिक महकमों तक भी पहूंच जाये की हम सक्रिय हो चुके हैं.
gov.bih.nic.in
साथ ही मै आप लोगों से निवेदन करता हूं, इस संदर्भ मे और अपने विचार रखें, की कैसे इस ओर कदम बढाया जा सकता है. और कैसे इस चीख को खत्म किया जा सकता है.
मीडिया पे मैने कोई हस्तछेप नही लगाया है. बस याद दिलाने की कोशिश की है कि, आज लोगों का सहारा और विश्वास जो इस पर बना है उसे और प्रगाड करने की जरूरत है.
मैं आशा करता हूं की अब प्रतिक्रिया और आलोचनाओं मे अपनी कलम की स्याही बरबाद न कर के सिर्फ काम की बात करेंगे.
ईश्वर हमें शक्ति दे.................
.....................................................dimagless

1 comment:

Divine India said...

बंधू…किसे पुकार रहे हो चौबारे से खड़े होकर…
लिखने के लिए कुछ भी लिख दो फुफकार करो या
डंक मारो कुछ भी बदलने वाला नहीं है क्योंकि तुम
स्वयं भी कितना बदले हो यह भी भीतर से जाना है… क्या कभी अपने ही घर में 2-3 को भी बदला है… या अपने आस-पास के कुड़े को हाथों से उठाया है… सोई हुई मानसिकता से चेतना का संचार नहीं होता… देश की बात तो बहुत बड़ी लगती है आह्वान करना भी आसान होता है पर गाँधी को भी अपना कर्म एक छोटे से जगह से शुरु करना पड़ा था…।
तुम्हारी लेखनी जरुर उम्दा थी मगर उसमें घुटन मुझे कहीं नहीं दिखा था इसका मतलब यह है कि बाते बड़ी-2 करने से ज्यादा बिना किसी और की प्रतीक्षा के स्वयं ही मैदान में कुद जाओ काफिला अपने-आप तैयार हो जाएगा… बारंबार एक ही विषय पर लिखते रहने से आगाज त्वरित नहीं होगा…।