जिंदगी एक पहेली है
दुःख मेरी सहेली है
रह -रह के होता विच्लांत है
न जाने मन क्यों अशांत है
तन्हाईओ के तारो मे झनझनाहट है
मन के कोने मे एक आहट है
इस मोड पर नही किसी का सहारा
मझधार तो है पर नही किनारा
रह-रह के होता आक्रांत है
न जाने मन क्यों अशांत है
हर वक़्त नए मोड कि तलाश है
दूर धरती मुझसे दूर आकाश है
चारो तरफ फैला दुःख और नाश है
दिल मे जल रही फिर भी एक आस है
परेशानियो से मन विच्लांत है
न जाने मन क्यों अशांत है।
3 comments:
life is a memorable moments...aur jab har lamha yaad ban jaye to man kabhi kabhi un bante yadoon ke karan ashant ho jata hai.shayd aap ki is kavita me bhi man isi liye ashhant hai!!!
यह कविता कुछ कह रही है…
अच्छी तरह से अशांत मन की
व्यथा को खुद में ही तलाश कर लिया…
बहुत सुंदर!!!
isme ashant man ko bataya hai........
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