मैं आप के साथ रहना चाहती हूँ
मैं आप के साथ जीना चाहती हूँ
हाथों मे हाथ डाल खिलखिलाना चाहती हूँ
कंधे पर सिर रख रोना चाहती हूँ
मैं आपको पाना चाहती हूँ
मैं आपके साथ जीना चाहती हूँ
बिन आपके नही जी पाऊँगी
निर्जीव हो जाउंगी मैं
कैसे रह पाऊँगी मैं
भला प्राण के भी कोई साँस ले पता है
बिना आत्मा के शारीर रह पाता है
तो फिर कैसे सोच लिया तुमने
रह लुंगी मैं तुम बिन
मेरा प्यार हो तुम
रक्त संचार हो तुम
मेरी हिम्मत हो तुम
मेरा हाथ पकड़ आगे बढ़ने कि सीख देते हो तुम
मेरा दामन थाम चलते रहना तुम
जब तक साँस रहेगी मैं आप के साथ रहूंगी ।
6 comments:
सहज-सुन्दर रचना।
*** राजीव रंजन प्रसाद
भला प्राण के भी कोई साँस ले पता है
बिना आत्मा के शारीर रह पाता है
बेहतरीन रचना सार्थक सवाल
आत्मा और शरीर तो पूरक है
सही कहा आपने ,किसी के साथ रहने से ही उसको बेहतर समझा जा सकता है..
सही कहा आपने ,किसी के साथ रहने से ही उसको बेहतर समझा जा सकता है..
रचना तो अच्छी है लेकिन पुरुष पर इतनी निर्भरता ठीक नहीं ।
सुन्दर समर्पित भाव!
मेरा दामन थाम चलते रहना तुम
जब तक साँस रहेगी मैं आप के साथ रहूंगी ।
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