Monday, June 30, 2008

तेरा ख्याल

अपनी फितरत.....
अपनी फितरत तो बचपन से ऐसी रही की जहां खूबसूरती देखी, संजीदा हो गए। अगर मैं कहूं की ६० साल की एक टीचर जो रिटाइयर्मेंट के करीब थी। उनकी अदाओं पैर बड़ी शिद्दत से एक गजल लिखी, तो कोई भी बेसाख्ता होकर हसने लगेगा किसी की हँसी और खुशी से मुझे कोई एतराज नही है, आज कल तो जमाना ही चीनी कम का है

गजल की खासियत यह है की अध्यापिका की उम्र को नजर अंदाज कर दिया गया है और ढलती उम्र में उनकी जवां दिल कों पेश किया गया है। जो लरजिश उनकी चाल में दिखती है, वही सोलवें सावन के यौवन में मिलती है। बस नजर चाहिए देखने वाली। कोई भी मिले, बड़ी सच्चाई से स्वागत किया जाता है। वह उम्र में मेरी मां से बड़ी हैं, लेकिन विचारों में शायद आज भी वह तनाव में जूझती जवानी से भी जवान हैं। उनका इरादा कर गुजेरने का और हर तरफ खुशियां बिखेरने का रहा।

लाखों बच्चों कों कानपूर के पंडित पृथ्वी नाथ कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाकर उन्होंने इस काबिल बना दिया की वह दुनिया में नाम कर रहे हैं। सच्चाई उनके कर्तव्य में हमेशा जीवित रही, शायद यही वजह है की वह आज भी इतनी जीवंत हैं। पेश है आदरणीय सरोल बाला मैम पर गजल


पीयूष पांडेय (राजा)
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तेरा ख्याल
जिस्म की बात कारूं तो मैं काफ़िर ..........
जोशाये-दुनिया जवां है,
तेरे ख्याल से खम से
शब को स्याह किया है
नजरें समंदर चुरा गई हैं
लब पे पोशिदा अदाए कातिल
रुख्सारों पर एक बात नई है
जिस्म की बात कारूं तो मैं काफ़िर ..........
लर्जिशे मीना खुदा कयामत
एक इंसान दीवाना हो गया
अब शहर मे बाकी कहाँ अंधेरा
हर दिल में उम्मीदें चरागां जल गया है
जिस्म की बात कारूं तो मैं काफ़िर ..........

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2 comments:

Anonymous said...

kya likhte ho yaar . kya khayal hai. Gajab ki imandari aur usse bhi khubsurat abhivyakti ki jiti tarif ki jaye kam hai ..

bahut bahut aachee

keep it up

jism ki baat karun to mai kafir ....


regards
ek dura kafir

Anonymous said...

hummm

Saroj bala mam ke bare me ..!!

Kavit ke lihaj se bahut behter hai ...

pata nahi tha ki raja bhai itni sanjidagi se ubko dekhte hain ...


aap behad sanjida lagtein hain..

shabdon ka chayan bhi bahut badhiya hain ..

...