Monday, October 29, 2007

परछाईयां

परछाईयां

कल रात एक सपना आया

कुछ काली परछाईया

आपस में लड रही थी

अंधेरा घना था

और परछाईया

और काली थी

अचानक एक बिजली सी चमकी

उजाले के आभास ने

विचारों को तोडा

देखा तो मेरा चेहरा

दूसरे चहरे से जिरह कर रहा था

दूसरा भी

मैं ही था ,,,,

1 comment:

Monika (Manya) said...

Waah kya baat hai.. parchaaiyan... ujaale ka abhaas.. fir khud ka hi aks.. khud se hi sawaal...