Thursday, July 3, 2008

इंतज़ार

विकसन भाई लगातार लिख रहे हैं । लगता है कभी ख़ुद खबर लिखने वाले इस सज्जन की कविताओं पर खबर या आलेख लिखने का समय करीब आ गया है। हमारी शुभ कामनाएं आपके साथ हैं। पेश है उनकी एक और रचना खास गुलज़ारबाग पर ।


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ऐसी चोट खाई है दिल पर कि अब तो,


दर्द का अहसास भी जाने लगा है..


तुम्हारा इंतज़ार करना मेरी आदत हो गई है,


पर दिल यह बात मानने को तैयार ही नहीं है..


कि शायद तुम अब कभी नहीं आओगे,


तुम्हारे आने के इंतज़ार में जैसे-तैसे दिन तो कट जाता है..


पर शाम होते ही हसरतें एक बार फिर से अंगड़ाई लेने लगती हैं,


रात इतनी लम्बी व तनहा होती है..


कि उसे करवट लेकर काटना भी मुश्किल हो जाता है,


दिल ने भी अब जवाब देना बंद कर दिया है..


शायद उसे भी नहीं पता,


कि में कौन सा रिश्ता निभाने के लिए


यह सारी ज़द्दोज़हद कर रहा हूं..


4 comments:

आशीष कुमार 'अंशु' said...

सुन्दर कविता...

Anonymous said...

kuch batayenge aap kiska intazar karte rahe...!!!!

dimagless said...

Lines of poem shows the inner depthness of ur feeling. Its the real way to give ur feelings the real words. very nice...

maaya said...

kehte hain ki "jab chetna shoonya ho jaati hai tab vedna ka ehsaas nahi hota......"

Nav chetan...navjeevan,,,,kaarun krandan.....kabhi kabhi kuch dard in shabdin ki seema se baharho jaate hain aur kabhi to inme simat kar hi reh jaate hian,.....

khoobsoorat abhivyakti hai bhaav ki.....