Saturday, June 9, 2007

वो जब थी.............!!!



वो जब थी , तो कुछ यूं भी किया करती थी .........................
हाथॉ में लिख के मेरा नाम
अपनी होठों से चुमा करती थी
फिर दुप्पट्टे के उस किनारे को
ऊंगलियों मे मोडा करती थी
शर्माती थी, कुछ घबडाती थी
फिर पलके उठाये मुझको, एक टक निहारती थी
ओ जब थी, तो कुछ यूं भी किया करती थी ....................

उसके लम्बे खुले बाल कमर तक लहराते थें
हवा के झोंको से उड कर
चेहरे को ढंक जाते थें
फिर सम्भालती अपनी जुल्फों को
कोइ गीत गुनगुनाती थी
कभी रूठ्ती , कभी जलाती थी
कभी कान्धे से टिक के मेरे ,सपने कई बनाती थी
वो जब थी , तो कुछ यूं भी किया करती थी ............................

बारिश की लेके बूंदें, वो खुब इठ्लाती थी
पास जो उसके जाऊं, दूर निकल जाती थी !
चलना है साथ तुम्हारे, बस यही मुझे समझाती थी
कभी चुप सी थी, कभी गुम सी थी
कभी आंखों के छलकते आंसू, यूं ही पिया करती थी,
वो जब थी, तो कुछ यूं भी किया करती थी......................

अब नही है वो! न आयेगी कभी...
अब न कोई लम्हा बनायेगी कभी
आज याद आ रहा है, रूठ के उसका जाना
लाख मनाने पर भी, वापस नही आना
अब मैं समझा हूं वो क्यों,
कुछ यूं भी जिया करती थी,
वो जब थी, तो कुछ यूं भी किया करती थी......
...........-
------------------dimagless



3 comments:

Monika (Manya) said...

very sentimental... down the memory lane... tochy.. sweet n simple...

dimagless said...

thanks manya for ur valuable comments...the poem is very much real to me!!!

Unknown said...

अब नही है वो! न आयेगी कभी...
अब न कोई लम्हा बनायेगी कभी
आज याद आ रहा है, रूठ के उसका जाना
लाख मनाने पर भी, वापस नही आना
अब मैं समझा हूं वो क्यों,
कुछ यूं भी जिया करती थी,
वो जब थी, तो कुछ यूं भी किया करती थी.................-

ab ispe main kya comments dun
likhne wala jahir si baat hai mujhe jyada ya yu kahe mujhse kuch alag to soch rakhta hi hai lekin ek baat to such hai ki-
WO MAAR GAYA TO USKE HUNAR KA PTA CHALA.
yha marne ka matalab dur jaane se hai, shayad bahut dur, jha tak pahunchna sabke baas ki baat nahi hoti. lekin such ye bhi hai ki-
CHALNA HI JINDAGI OR CHALTE HI JAA RAHE HAI.