Thursday, June 7, 2007

मॉफ कीजिएगा मगर मैं चुप नहीं रहूंगा


छोटा मुंह और बडी बात

हां कुछ ऐसा ही माना जाएगा अगर मैं कुछ कहूंगा। मगर मुझे परवाह नहीं। कोई माने या न माने। कहूंगा वही जो कहना है। और कहना यही है कि आज हिंदी के तथाकथित बड़े, पहुंचे हुए और सर्वज्ञ किस्म के लोग जो लिख रहे हैं वह कूडे दान के अलावा कहीं और स्थान पाने योग्य नहीं है। जी हां मैं बात कर रहा हूं उन संपादकों, पत्रकारों और साहित्यकारों की जो नौकरी बचाने या पेट भरने की चाह में कुछ भी अनाप शनाप लिखते चले जा रहे हैं। हां, बगैर किसी शक, शुबहा के इन तथाकथित,स्वनामधन्य और अनामधन्य महोदयों के प्रगतिशील लेखन को मैं खारिज कर रहा हूं। क्योंकि जिस पूर्वाग्रह के साथ लिखा जा रहा है वह बहुत सही नहीं है। कम से कम मुझे साफ दिखाई दे रहा है कि यह बिलकुल वैसे ही है जैसे किसी बकरे को हलाल करने से पहले खूब चारा खिलाया जा रहा हो. जो लोग केवल बकरा और उसे चारा खिलाने को देख कर मुग्ध हुए जा रहे हैं वह दरअसल पर्दे के पीछे की हकिकत से वाकिफ ही नहीं है. उन्हें मालूम ही नहीं की यह बकरा जल्द ही मार दिया जाएगा. यही वजह है कि वह इसे अद्वितीय घटना मानकर अचंभित हुए जा रहे हैं। उन्हें पता ही नहीं की अगर बकरे को मारे जाने की योजना न होती हो उसे चारा भी नहीं खिलाया जाता.मैं साफ कर देना चाहता हूं कि मैं आपके विरोध में खडा नहीं हूं। दरअसल मैं एक दूसरी हवा चलाने की जुगत भिड़ा रहा हूं जो इस ज़हरीली हवा से हमें निजात दिला सके ।बहरहाल खेल अब आमने सामने का सा दिखने लगा है। तो आईए जरा जोर आजमाईश हो जाए ।

2 comments:

Monika (Manya) said...

ह्म्म्म्म... सैरगाह में इतना कुछ हो गया और हमें खबर ही नहीं.. खैर.. आप जो भि कह रहे हैं सही है.. इस नयी बयार का हमें भी इंतजार है.. चंद महकी सांसें .. बिना ज़हर की.. इंतजार रहेगा..

Anonymous said...

bahut sahi lage raho.
hum aapke sath hai
ye aawaj to uthni hi thi fir aaap mai ya tu se kya fark padta hai. fark to awaj or usme chipa sandesh fix karega.
khair
best of luck for ur fight.