Wednesday, July 11, 2007

आपकी उंगली पकड कर मैंने चलना सीखा

आपकी उंगली पकड कर मैने चलना सीखा


चंद शब्‍द कविता से पहले। जिंदगी मेरी है। कहानी मेरी है। किसी बेहद अजीज ने लिखा है। टुकडो में ही उसे अपनी कहानी सुनाई थी। सोचा न था कविता बन जायेगी। सच्‍ची कहानी की सुंदर कविता। शुक्रिया दोस्‍त।




आपकी उंगली पकड़ मैने चलना सीखा॥
आपके साये में ही बीता बचपन मेरा..
आपसे ही पाये सवालों के जवाब॥



आप ही सबसे पहले प्यारे दोस्त बने..
हमारे बीच दो पीढीयों का फ़ासला था...
फ़िर भी मैं सबसे ज्यादा आपसे ही जुड़ा..
मेरी शैतानियों का सरमाया आप ही थे...
आप ही मेरे इकलौते राज़दार थे...


याद है वो दिन मुझे मै १७ बरस का था...
और पहली बार मैने 'उसे' देखा..
मैं कितना प्रफुल्लित.. रोमांचित..
आया और आपसे सब कह दिया...
आपने सुना पर कहा कुछ नहीं...


शाम को जब लौटा...
आपके हाथों में 'उसका' पता था...
मेरे अनगढ पहले प्यार का अंकुर...
आपकी हथेली पर ही पनपा था...
मेरे दिन ख्वाबों से बीतने लगे...
रातें चांदी की होने लगी...


'उसको' देखता और सोचता रहता था...
मेरा मूक प्यार..'उसने' भी कभी कुछ नहीं कहा..
मैने भी कभी कुछ पूछा नहीं..
मेरे अल्हड़, चंचल ने सीख लिया था..
इंतजार करना और परेशान रहना...
एक अनजाने के लिये...


ऐसे ही दिन बीतने लगे...
ख्वाबों के पलक-पावड़ों पर...
इस बीच एक दिन मैंने इजहार भी कर दिया...
पर कोई जवाब आया नहीं..


फ़िर एक दिन मैंने वो शहर छोड़ दिया...
तरक्की की दौड़ में शामिल होने...
इस 'बड़े व्यस्त शहर' में आ गया..
पर फ़िर भी बंधा रहा 'उसके' मोह से..


फ़िर एक दिन खबर मिली की॥
मेरी 'वो' पराई हो गयी....
उसकी यादें मुझे रूला गयी...
मेरे तकिये भिंगो गयी...
मैं खुद को ही खोने लगा...



पर एक दिन आप भी चले गये॥
कभी ना लौटने के लिये...
पर अजीब विडंबना मेरे पत्थर दिल की...
इस बार पलकें तक नहीं भींगी...
शायद अब कुछ खोना नहीं चाहता था..
यादें भी नहीं॥आंसू भी नहीं॥



जिंदगी फ़िर यूं ही चलने लगी..
कुछ खुशियां फ़िर मिली...
जाते हुये मुझे और तन्हा कर गयीं...


अब भी दौड़ रहा हूं॥ जिंदगी के साथ॥

जिंदगी की तलाश में...
अब भी तन्हा हूं.. भीड़ के साथ में...
पर अब दर्द कम होने लगा है...



शायद एक दिन ये कमी पूरी हो जायेगी॥
मैं भी बहुत व्यस्त और सफ़ल हो जाउंगा..
और एक दिन ये सब भूल जाउंगा...
पर आपसे ना कभी मिलूंगा..
ना कभी आपको भूल पाउंगा..

3 comments:

Divine India said...

प्रशंसा के पात्र हैं आप जो इतनी सुंदर अभिव्यक्ति को हृदय के कोलाहल से खींचकर बाहर निकाला है…।
अच्छा लगा…थोड़ी गहराई की आवश्यकता है…।
इससे काफी हद तक मिलती जुलती कविता को मैंने भी लिखा था कई शब्द तो समान ही दिख रहे हैं जो यह दर्शाता है कि वर्तमान पीढ़ी के भावचित्र कैसे हैं और कितने समान…मौका मिले तो इसे देखें---
http://divine-india.blogspot.com/2007/02/blog-post_12.html

Unknown said...

wah poem aapki to nahi hai lekin hai bahut acchi or shayad usse bhi kahin jyada sacchi. maja aa gaya. poem ka end bda marmik hai or shayad poet ne jo likha hai, jis liye likha hai reader wahi sochne par majboor ho jaega. yahi ek behtar poem ya kisi writer le liye sabse bada tohfa hai ki use jo likha logo ne wahi samjha.
HA EK CHIJ OR KAHNA CHAHUNG KI-
kewal premika ya pita ke door jaane kahi dard nahi hota, dard unke bhi dur jaane ka hota hai jo kuch na hote hue bhi bahut khass hote hain. OR usse bhi jyada bura tab lagta hai jab koi paas hote hue bhi dur ho jaae ya hona chahe. jabki dusre ne aisa kabhi socha bhi na ho.

Anonymous said...

If an innocence writes something, it just a beat of heart.The words of poem do speaks .... ur thoughts are very innocence as they were before!!!
dimagless