Wednesday, July 25, 2007

बस एक पत्थर ही तो है....




अभी-अभी मारी है जिसे तुमने ठोकर...


सही कहते हो तुम...


वो रास्ते का रोड़ा..निर्जीव...


बस एक पत्थर ही तो है...


पर चमकते हैं जो आभूषणों में....


वो कीमती नगीने...वो अनमोल रत्न...


वो भी पत्थर ही तो हैं...


बना है जिससे प्रेम का ताजमहल...


वो अप्रतिम सौंदर्य...वो संगमरमर...


वो भी एक पत्थर ही तो है...


घिसते ही जिससे भड़के चिंगारी...


बन जाये जो आग... वो चकमक...


वो भी एक पत्थर ही तो है...


जहां लिखा तुमने पहला अक्षर...


वो पहला शिक्षण...वो स्लेट वो चाक...


वो भी पत्थर ही तो हैं....
जो बना दे लोहे को भी कुंदन..
वो अद्भुत स्पर्श...वो पारस...
वो भी केवल पत्थर ही तो है


पूजते हो जिसे तुम..कहते हो ईश्वर...


वो शिव-शंकर .. वो शालिग्राम...


वो भी पत्थर ही तो हैं...


पत्थरों से बनी ये दुनिया.. भी पत्थर..


खो चुकी जिनमें संवेदनायें.. वो बेजान बुत...


ये खामोश धड़कते तेरे-मेरे दिल...


सब केवल पत्थर ही तो हैं....


7 comments:

Anonymous said...

खो चुकी जिनमें संवेदनायें.. वो बेजान बुत...

ये खामोश धड़कते तेरे-मेरे दिल...

सब केवल पत्थर ही तो हैं....

kya bat hae manya

परमजीत सिहँ बाली said...

मान्या जी,बहुत सुन्दर ढंग से रचना को लिखा है।बहुत ही भावनात्म ढंग से पत्थर को अपनी रचना में तराशा है।बधाई।

पत्थरों से बनी ये दुनिया.. भी पत्थर..
खो चुकी जिनमें संवेदनायें.. वो बेजान बुत...
ये खामोश धड़कते तेरे-मेरे दिल...
सब केवल पत्थर ही तो हैं....

Udan Tashtari said...

अरे वाह, मान्या, बहुत गहरी बात कह गई हो. बधाई.

Unknown said...

मान्या, बहुत बहुत सुंदर
कहते हैं पत्थर भी पिघल जाते हैं...
कभी इनमें भी धड़कते दिल मिल जाते हैं...

dimagless said...

पत्थरो की किम्मत यहां कोन समझता है? पर सोच कर देखो, पत्थ्रर पे पैर मारने से चोट लगती है और उसी पत्थर को पूजने से सुकुन मिलता है.खामोश पत्थरो की ये आवाज़ दिल तक पहुंच गयी.

Anonymous said...

वाह! क्या पत्थरबाजी की है।आदिकाल मानवो की याद आ गई।

Divine India said...

haahaahaa...this is for anonymous...
बहुत पहले मैंने पत्थर पर मानव नजरिए से कुछ लिखा था यह पढ़कर वह रचना याद आ गई…
दार्शनिक रुप में लिखा है… गहरी रचना है… जो आदिमानवों की भी याद दिलाता है और आध्यात्मिक मानवों की भी!!!